Tuesday, 9 August 2022

Ujjain Tour Plan


जय श्री महाकाल 🙏 आप सभी को उज्जैन पधारने का धन्यवाद! 

आप को आज उज्जैन के प्रमुख मंदिर कि जानकारी के साथ साथ यह भी प्लान बताना चाहूगा कि किस मंदिर के दर्शन पहले और अंत में करे जिससे आप अपना समय का सही तरीके से यूटिलाइजेशन कर सके और प्रतेक मंदिर के दर्शन कर सके!
जय महाकाल का नाम लेकर हम उज्जैन घुमने का प्लान करते है! तो चलये हम सबसे पहले महाकाल मंदिर से शुरुवात करते है अगर आप पहली बार उज्जैन आ रहे है तो कम से कम 2-3 दिन का प्लान कर के आए जिससे आप अच्छी तरह से घूम सके! सर्वप्रथम आप महाकाल भगवान के दर्शन करने का लाभ लेवे अगर आप सुबह 10:am बजे के पहले उज्जैन में आ जाते है तो महाकाल मन्दिर से अपनी शुरुवात कर सकते है! ताकि आपके पास बाकि सारे मंदिर घुमने का पर्याप्त समय मिल जाए या फिर आप उसी दिन उज्जैन से 140KM (One side) दूर दुसरे ज्योतिर्लिंग ओम्कार्रेश्वर का भी प्लान कर सकते है जिसके लिए आपको सुबह 10 बजे के पहले निकलना होगा जिससे आप एक ही दिन में वापस उज्जैन आ सकते है! जिसमे आपको आने और जाने में कम से कम 7-8घंटे लग सकते है क्योंकि रास्ता घाट और पहाड़ी को काटते हुए निकला है और नर्मदा नदी के घाट घुमने में भी जादा समय व् आनंद आता है जिसके लिये आप पब्लिक ट्रांसपोर्ट या प्राइवेट टैक्सी या उज्जैन से बाइक रेंट पर लेकर भी जा सकते है!

विशेष जानकारी-: उज्जैन में होटल या धर्मशाला हेतु आप 2 जगहों का चयन कर सकते उज्जैन रेलवे स्टेशन के पास आप को बहुत सारे होटल/धर्मशाल के ऑप्शन मिलजाएगे या फिर आप महाकाल मंदिर के पास भी रुक सकते है जिसमे हर तरह के बजट अनुसार ट्रस्ट होटल/धर्मशाला/प्राइवेट होटल मिल जाते है हमारी विशेष राय है कि आप प्रथम महाकाल मंदिर के पास रुकने का प्लान करे! रेलवे स्टेशन से मंदिर कि दुरी 2KM है!






महाकाल मंदिर से दर्शन होने के बाद आप पास ही में हरसिधी माता मंदिर का प्लान करे! क्योंकि यह महाकाल मंदिर के सबसे पास है और 51 शक्ति पीठ में एक शक्ति पीठ होने से माता के दर्शन का विशेष महत्त्व है खास बात व् माता के दर्शन का लाभ नवरात्रि के समय अत्यधिक होता है!





राम घाट यह भी महाकाल मंदिर से बिलकुल नजदीक है और आप चाहे तो सुबह शिप्रा नदी में डुबकी लगाने के बाद महाकाल दर्शन कर सकते है किन्तु आप राम घाट का आनंद शाम को शिप्रा नदी के आरती के समय विशेष लाभ ले सकते है आप को शिप्रा नदी का घाट शाम के वक्त सबसे सुकून व् आनदं देने का स्थान साबित हो सकता है !




जय श्री कृष्णा

अब आप उज्जैन शहर से आउट साइड वाले मंदिर का प्लान कर सकते है जिसके लिये आप बाइक रेंट या ऑटो के जरिये सारे आउट साइड मन्दिर भ्रमण कर सकते है! यह मंदिर सबसे पहले रास्ते में आता है! यहा श्रीकृष्ण, बलराम एवं सुदामा जी का  शिक्षा स्थल रहा है जहा गुरु संदीपनी जी द्वारा 14  विध्या का ज्ञान दिया गया है!




मंगलनाथ यह मंदिर भी अपना विशेष महत्त्व रखता है यह पर मंगल दोष निवारण पूजा अर्चना कि जाती है और यहां मन्दिर भी गुरु संदीपनी आश्रम से कुछ ही दुरी पर स्थित है!









अगला स्थान काल भेरव मंदिर जह शिव अपने भैरव स्वरूप में विराजते हैं। वैसे तो भगवान शिव का भैरव स्वरूप रौद्र और तमोगुण प्रधान रूप है लेकिन कालभैरव अपने भक्त की करूण पुकार सुनकर उसकी सहायता के लिए दौड़े चले आते हैं। काल भैरव के इस मंदिर में मुख्य रूप से मदिरा का ही प्रसाद चढ़ता है।

मंदिर के पुजारी भक्तों के द्वारा चढ़ाए गए प्रसाद को एक प्लेट में उढ़ेल कर भगवान के मुख से लगा देते हैं और देखते ही देखते भक्तों की आंखों के सामने ये प्रसाद भगवान भैरोनाथ पी जाते हैं। ये ऐसा चमत्कार है जिसे देखने के बाद भी विश्वास करना एक बार को कठिन हो जाता है। क्योंकि मदिरा से भरी हुई प्लेट पलभर में खाली हो जाती है। इसके अतिरिक्त जब भी किसी भक्त को मुकदमे में विजय हासिल होती है तो बाबा के दरबार में आकर मावे के लड्डू का प्रसाद चढ़ाते हैं। तो वहीं किसी भक्त की सूनी गोद भर जाती है तो वो यहां बाबा को बेसन के लड्डू और चूरमे का भोग लगाते हैं। प्रसाद चाहे कोई भी क्यों न हो बाबा के दरबार में आने वाला हर भक्त कोई ना कोई समस्या लेकर आता है और बाबा काल भैरव अपने आशीर्वाद से उसके कष्टों को हर लेते हैं।






काल बेरव के पास ही स्थित राजा भर्तृहरि की गुफा  मोजूद है  इस के संबंध में माना जाता है कि आज से लगभग ढाई हजार वर्ष पहले उज्जैन के राजा भर्तृहरि (Bhartrihari Cave in Ujjain) ने गुरु गोरखनाथ जी के संपर्क में आने के बाद वैराग्य धारण कर लिया था और तपस्या के लिए चले गए थे। जिसके बाद राजा भर्तृहरि ने इसी गुफा में लगभग 12 वर्षों तक कठोर तपस्या की थी। कहा जाता है कि राजा भर्तृहरि द्वारा बारह वर्षों की अपनी इस कठीन तपस्या को पूर्ण करने के बाद भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन भी दिए थे।

राजा से योगी बने भर्तृहरि की इतनी कठोर तपस्या से देवराज इंद्र को भी डर लगने लगा था कि कहीं ऐसा न हो कि तपस्या के बल पर भगवान शंकर से वरदान मांगकर भर्तृहरि स्वर्ग पर आक्रमण कर दे। यही सोचकर इंद्र ने गुफा में बैठकर तपस्या कर रहे भर्तृहरि पर एक विशाल पत्थर गिरा दिया। लेकिन भर्तृहरि ने उस पत्थर को एक हाथ से रोक लिया और उसी तरह तपस्या में बैठे रहे। राजा भर्तृहरि के हाथ का निशान आज भी गुफा में मोजूद  है !

विशेष-: उज्जैन को City of Temple भी कहा जाता है यह के और विशेष मंदिर है जह आप भ्रमण कर सकते है!

इस्कॉन टेम्पल

बड़ा गणेश

चिंतामन गणेश 

गड काली माता मंदिर 

केडी पैलेस आदि

अंत में में आपको विशेष ध्यान दिलाना चाहूगा कि 2-3 दिन में आप उज्जैन सम्पूर्ण दर्शन और भस्म आरती का लाभ और ओम्कार्रेश्वर दर्शन आराम से कर सकते है बस आप सही प्लान करगे तो आप सही समय पर सभी जहग का आनंद ले सकेगे! 



Tuesday, 12 July 2022

Mahakaleshwar Temple Ujjain

 


👏सावन के महीने का विशेष महत्व बताया गया है. सावन के महीने में भगवान शिव बाबा महाकाल  की विधिवत पूजा करने वालों की हर मनोकामना पूरी हो जाती है. साल 2022 में सावन 14 जुलाई से शुरू होगा और 12 अगस्त को श्रावण पूर्णिमा के साथ खत्म होगा.

सावन का महीना देवों के देव महादेव को अतिप्रिय है. सावन मास में भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा का विधान है. मान्यता है कि सावन मास में भगवान शंकर की पूजा व सोमवार व्रत करने से मनोकामना पूरी होती है. सावन का पहला सोमवार 18 जुलाई को पड़ रहा है. इस पूरे महीने भगवान महादेव की विशेष पूजा अर्चना की जाती है. इस बार सावन के चार सोमवार व्रत पड़ रहे हैं.

सावन माह के प्रति सोमवार को बाबा महाकाल अपनी प्रजा का हाल जानने और महाकाल मंदिर से निकल कर पालकी में सवार होकर भ्रमण करने निकलते है हर सोमवार का अलग अलग महत्व होता है बाबा महाकाल राजा कि रूप ,मुखोटा एवं श्रंगार किया जाता है 


ये है सावन सोमवार की पूरी लिस्ट
सावन का पहला सोमवार- 18 जुलाई 
सावन का दूसरा सोमवार- 25 जुलाई
सावन का तीसरा सोमवार- 01 अगस्त
सावन का चौथा सोमवार- 08 अगस्त
सावन का आखिरी दिन 12 अगस्त, शुक्रवार 



Tuesday, 5 October 2021

Story About Mangalnath Temple



 मंगलनाथ मंदिर, मध्य प्रदेश की धार्मिक नगरी उज्जैन में क्षिप्रा नदी के किनारे स्थित है। उज्जैन को पुराणों में मंगल की जननी कहा जाता है। ऐसे व्यक्ति जिनकी कुंडली में मंगल भारी रहता है, वे अपने अनिष्ट ग्रहों की शांति के लिए मंगलनाथ मंदिर में पूजा-पाठ करवाने आते हैं। कर्क रेखा पर स्थित इस मंदिर को देश का नाभि स्थल माना जाता है।

मंगल दोष एक ऐसी स्थिति है, जो जिस किसी जातक की कुंडली में बन जाये तो उसे बड़ी ही अजीबोगरीब परिस्थिति का सामना करना पड़ता है। ऐसे व्यक्ति जिनकी कुंडली में मंगल भारी रहता है, वे अपने अनिष्ट ग्रहों की शांति के लिए ‘मंगलनाथ मंदिर’ में पूजा-पाठ करवाने आते हैं।

मान्यता है कि मंगल ग्रह की शांति के लिए दुनिया में ‘मंगलनाथ मंदिर’ से बढ़कर कोई स्थान नहीं है। कर्क रेखा पर स्थित इस मंदिर को देश का नाभि स्थल माना जाता है। मंगल को भगवान शिव और पृथ्वी का पुत्र कहा कहा गया है।। इस कारण इस मंदिर में मंगल की उपासना शिव रूप में भी की जाती है।

हर मंगलवार के दिन इस मंदिर में लोगों का ताँता लगा रहता है, लेकिन मार्च की अंगारक चतुर्थी के दिन का नजारा बेहद भव्य होता है। आप अपनी सुविधा अनुसार इस मंदिर में कभी भी आ सकते हैं। यहाँ हर मंगलवार को विशेष पूजा-अर्चना का दौर चलता रहता है।

हालाँकि भारत में मंगल देवता के कई मंदिर हैं, लेकिन उज्जैन में इनका जन्म-स्थान होने के कारण यहाँ की पूजा को ख़ास महत्व दिया जाता है। कहा जाता है कि यह मंदिर सदियों पुराना है। सिंधिया राजघराने में इसका पुनर्निर्माण करवाया गया था। उज्जैन शहर को भगवान महाकाल की नगरी कहा जाता है, इसलिए यहाँ मंगलनाथ भगवान की शिव रूपी प्रतिमा का पूजन किया जाता है।

मंगलनाथ मंदिर के पास ही स्थित है अंगारेश्वर महादेव यहाँ पर भी भात पूजा एवं सम्पत्ति में वर्धि हेतु प्रति मंगलवार विशेष पूजा इस मंदिर पर कि जाती है!

मंगल भगवान का स्थान नवग्रहों में आता है। यह ‘अंगारका’ और ‘खुज’ नाम से भी जाना जाता है। वैदिक पौराणिक कथाओं के अनुसार मंगल ग्रह शक्ति, वीरता और साहस के परिचायक है तथा धर्म के रक्षक माने जाते हैं। मंगल देव को चार हाथ वाले त्रिशूल और गदा धारण किए दर्शाया गया है। मंगल देवता की पूजा से मंगल ग्रह से शांति प्राप्त होती है तथा कर्ज से मुक्ति और धन लाभ प्राप्त होता है। मंगल के रत्न रूप में मूंगा धारण किया जाता है। मंगल दक्षिण दिशा के संरक्षक माने जाते हैं।

स्कन्दपुराण’ के ‘अंवतिकाखंड’ में इस मंदिर के जन्म से जुड़ी कथा है। कथा के अनुसार अंधाकासुर नामक दैत्य ने भगवान शिव से वरदाना पाया था कि उसके रक्त की बूँदों से नित नए दैत्य जन्म लेते रहेंगे। इन दैत्यों के अत्याचार से त्रस्त जनता ने शिव की अराधना की। तब शिव शंभु और दैत्य अंधाकासुर के बीच घनघोर युद्ध हुआ। ताकतवर दैत्य से लड़ते हुए शिवजी के पसीने की बूँदें धरती पर गिरीं, जिससे धरती दो भागों में फट गई और मंगल ग्रह की उत्पत्ति हुई।

शिवजी के वारों से घायल दैत्य का सारा लहू इस नए ग्रह में मिल गया, जिससे मंगल ग्रह की भूमि लाल रंग की हो गई। दैत्य का विनाश हुआ और शिव ने इस नए ग्रह को पृथ्वी से अलग कर ब्रह्मांड में फेंक दिया। इस दंतकथा के कारण जिन लोगों की पत्रिका में मंगल भारी होता है, वह उसे शांत करवाने के लिए इस मंदिर में दर्शन और पूजा-अर्चना के लिए आते हैं। इस मंदिर में मंगल को शिव का ही स्वरूप दिया गया है।

उज्जैन-आगरा-कोटा-जयपुर मार्ग, उज्जैन-बदनावर-रतलाम-चित्तौड़ मार्ग, उज्जैन-मक्सी-शाजापुर-ग्वालियर-दिल्ली मार्ग, उज्जैन-देवास-भोपाल मार्ग, उज्जैन-धुलिया-नासिक-मुंबई मार्ग। वही रेलवे के लिए उज्जैन से मक्सी-भोपाल मार्ग (दिल्ली-नागपुर लाइन), उज्जैन-नागदा-रतलाम मार्ग (मुंबई-दिल्ली लाइन), उज्जैन-इंदौर मार्ग (मीटरगेज से खंडवा लाइन), उज्जैन-मक्सी-ग्वालियर-दिल्ली मार्ग। वायुमार्ग- उज्जैन से इंदौर एअरपोर्ट लगभग 65 किलोमीटर दूर है।

उज्जैन में अच्छे होटलों से लेकर आम धर्मशाला तक सभी उपलब्ध हैं। इसके साथ-साथ महाकाल समिति की महाकाल और हरसिद्धि मंदिर के पास अच्छी धर्मशालाएँ हैं। इन धर्मशालाओं में एसी, नॉन एसी रूम और डारमेट्री उपलब्ध हैं। मंदिर प्रबंध समिति इनका अच्छा रखरखाव करती है।

साथ ही उज्जैन शहर में अच्छी तरह से घूमना चाहते है तो रेंटल बाइक भी लेकर घूम सकते है!

www.kirayepe.co.in

Tuesday, 31 August 2021

History Of Ujjain Mahakal


 मध्यप्रदेश के उज्जैन शहर में स्थित महाकालेश्वर मंदिर शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। इस मंदिर का कई पौराणिक ग्रंथों में काफी सुंदर वर्णन मिलता है। यहां भगवान शिव के दर्शन के लिए पूरे साल भक्तों का तांता लगा रहता है। कार्तिक पूर्णिमा, वैशाख पूर्णिमा एवं दशहरे पर यहां विशेष मेले लगते हैं। भगवान शिव के इस ज्योतिर्लिंग का श्रृंगार भस्म और भांग से किया जाता है। यहां की भस्मारती विश्व प्रसिद्ध है। इसे ‘महाकाल’ इसलिए कहा जाता है कि प्राचीन समय में यहीं से संपूर्ण विश्व का मानक समय निर्धारित होता था जिस कारण इस ज्योतिर्लिंग का नाम ‘महाकालेश्वर’ रखा गया है।

ऐसे हुई थी भगवान महाकाल की स्थापना: पुराणों के अनुसार, अवंतिका यानी उज्जैन भगवान शिव को बहुत प्रिय था। एक समय अवंतिका नगरी में एक ब्राह्मण रहता था। जिसके चार पुत्र थे। दूषण नाम के राक्षस ने अवंतिका में आतंक मचा दिया। वह राक्षस उस नगर के सभी वासियों को पीड़ा देना लगा। उस राक्षस के आतंक से बचने के लिए उस ब्राह्मण ने भगवान शिव की आराधना की। ब्राह्मण की तपस्या से खुश होकर भगवान शिव धरती फाड़ कर महाकाल के रूप में यहां प्रकट हुए और राक्षस का वध करके नगर की रक्षा की। नगर के सभी भक्तों ने भगवान शिव से उसी स्थान पर हमेशा रहने की प्रार्थना की। भक्तों के प्रार्थना करने पर भगवान शिव अवंतिका में ही महाकाल ज्योतिर्लिंग के रूप में वहीं स्थापित हो गए।

मंदिर कैसे पहुंचे? उज्जैन से लगभग 45 कि.मी की दूरी पर इन्दौर का एयरपोर्ट है। वहां तक हवाई मार्ग से आकर रेल या सड़क मार्ग से महाकाल मंदिर पहुंचा जा सकता है। देश के लगभग सभी बड़े शहरों से उज्जैन के लिए रेल गाड़ियां चलती हैं। उज्जैन पहुंचने के लिए सड़क मार्ग का भी प्रयोग किया जा सकता है।

महाकाल मंदिर के आस-पास घूमने के स्थान: यहां पास में ही हरिसिद्धि मंदिर है। जो देवी सती के इक्यावन शक्ति पीठों में से एक है। यहां प्रसिद्ध कालभैरव मंदिर भी है। जहां भगवान की मूर्ति को प्रसाद के रूप में मदिरा चढ़ाई जाती है। उज्जैन शहर के मध्य में गोपाल मंदिर है जो भगवान कृष्ण का दर्शनीय मंदिर है। यहां का मंगलनाथ मंदिर भी काफी फेमस है। मंगल संबंधी दोषों का नाश करने के लिए यह देश का एक मात्र मंदिर है। साथ ही भगवान श्री कृष्ण कि शिक्षा स्थल से भी उज्जैन नगर प्रसिद्ध है

मंदिर के बारे में जरूरी जानकारी: 

– मंदिर में प्रतिदिन सुबह भस्म आरती होती है। जिसमें ताजा मुर्दे की भस्म से भगवान महाकाल का श्रृंगार किया जाता है। आरती में शामिल होने के लिए पहले से ही बुकिंग करानी जरूरी है।

– महाकाल के दर्शन करने के बाद जूना महाकाल के दर्शन करना जरूरी माना गया है।

– वर्तमान में जो महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग है, वह 3 खंडों में विभाजित है। निचले खंड में महाकालेश्वर, मध्य खंड में ओंकारेश्वर तथा ऊपरी खंड में श्री नागचन्द्रेश्वर मंदिर स्थित है। नागचन्द्रेश्वर शिवलिंग के दर्शन साल में एक ही बार नागपंचमी के दिन ही होते हैं।

– गर्भगृह में भगवान महाकालेश्वर का विशाल दक्षिणमुखी शिवलिंग है। साथ ही माता पार्वती, भगवान गणेश व कार्तिकेय की प्रतिमाएं भी हैं। गर्भगृह में नंदी दीप स्थापित है, जो सदैव प्रज्वलित होता रहता है।

– उज्जैन का एक ही राजा माना जाता है और वह है महाकाल बाबा। ऐसी मान्यता है कि विक्रमादित्य के शासन के बाद से यहां कोई भी राजा रात में नहीं रुक सकता। कहा जाता है कि जिसने भी यह दुस्साहस किया है, वह संकटों से घिरकर मारा गया।

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