मंगल दोष एक ऐसी स्थिति है, जो जिस किसी जातक की कुंडली में बन जाये तो उसे बड़ी ही अजीबोगरीब परिस्थिति का सामना करना पड़ता है। ऐसे व्यक्ति जिनकी कुंडली में मंगल भारी रहता है, वे अपने अनिष्ट ग्रहों की शांति के लिए ‘मंगलनाथ मंदिर’ में पूजा-पाठ करवाने आते हैं।
मान्यता है कि मंगल ग्रह की शांति के लिए दुनिया में ‘मंगलनाथ मंदिर’ से बढ़कर कोई स्थान नहीं है। कर्क रेखा पर स्थित इस मंदिर को देश का नाभि स्थल माना जाता है। मंगल को भगवान शिव और पृथ्वी का पुत्र कहा कहा गया है।। इस कारण इस मंदिर में मंगल की उपासना शिव रूप में भी की जाती है।
हर मंगलवार के दिन इस मंदिर में लोगों का ताँता लगा रहता है, लेकिन मार्च की अंगारक चतुर्थी के दिन का नजारा बेहद भव्य होता है। आप अपनी सुविधा अनुसार इस मंदिर में कभी भी आ सकते हैं। यहाँ हर मंगलवार को विशेष पूजा-अर्चना का दौर चलता रहता है।
हालाँकि भारत में मंगल देवता के कई मंदिर हैं, लेकिन उज्जैन में इनका जन्म-स्थान होने के कारण यहाँ की पूजा को ख़ास महत्व दिया जाता है। कहा जाता है कि यह मंदिर सदियों पुराना है। सिंधिया राजघराने में इसका पुनर्निर्माण करवाया गया था। उज्जैन शहर को भगवान महाकाल की नगरी कहा जाता है, इसलिए यहाँ मंगलनाथ भगवान की शिव रूपी प्रतिमा का पूजन किया जाता है।
मंगलनाथ मंदिर के पास ही स्थित है अंगारेश्वर महादेव यहाँ पर भी भात पूजा एवं सम्पत्ति में वर्धि हेतु प्रति मंगलवार विशेष पूजा इस मंदिर पर कि जाती है!
मंगल भगवान का स्थान नवग्रहों में आता है। यह ‘अंगारका’ और ‘खुज’ नाम से भी जाना जाता है। वैदिक पौराणिक कथाओं के अनुसार मंगल ग्रह शक्ति, वीरता और साहस के परिचायक है तथा धर्म के रक्षक माने जाते हैं। मंगल देव को चार हाथ वाले त्रिशूल और गदा धारण किए दर्शाया गया है। मंगल देवता की पूजा से मंगल ग्रह से शांति प्राप्त होती है तथा कर्ज से मुक्ति और धन लाभ प्राप्त होता है। मंगल के रत्न रूप में मूंगा धारण किया जाता है। मंगल दक्षिण दिशा के संरक्षक माने जाते हैं।
स्कन्दपुराण’ के ‘अंवतिकाखंड’ में इस मंदिर के जन्म से जुड़ी कथा है। कथा के अनुसार अंधाकासुर नामक दैत्य ने भगवान शिव से वरदाना पाया था कि उसके रक्त की बूँदों से नित नए दैत्य जन्म लेते रहेंगे। इन दैत्यों के अत्याचार से त्रस्त जनता ने शिव की अराधना की। तब शिव शंभु और दैत्य अंधाकासुर के बीच घनघोर युद्ध हुआ। ताकतवर दैत्य से लड़ते हुए शिवजी के पसीने की बूँदें धरती पर गिरीं, जिससे धरती दो भागों में फट गई और मंगल ग्रह की उत्पत्ति हुई।
शिवजी के वारों से घायल दैत्य का सारा लहू इस नए ग्रह में मिल गया, जिससे मंगल ग्रह की भूमि लाल रंग की हो गई। दैत्य का विनाश हुआ और शिव ने इस नए ग्रह को पृथ्वी से अलग कर ब्रह्मांड में फेंक दिया। इस दंतकथा के कारण जिन लोगों की पत्रिका में मंगल भारी होता है, वह उसे शांत करवाने के लिए इस मंदिर में दर्शन और पूजा-अर्चना के लिए आते हैं। इस मंदिर में मंगल को शिव का ही स्वरूप दिया गया है।
उज्जैन-आगरा-कोटा-जयपुर मार्ग, उज्जैन-बदनावर-रतलाम-चित्तौड़ मार्ग, उज्जैन-मक्सी-शाजापुर-ग्वालियर-दिल्ली मार्ग, उज्जैन-देवास-भोपाल मार्ग, उज्जैन-धुलिया-नासिक-मुंबई मार्ग। वही रेलवे के लिए उज्जैन से मक्सी-भोपाल मार्ग (दिल्ली-नागपुर लाइन), उज्जैन-नागदा-रतलाम मार्ग (मुंबई-दिल्ली लाइन), उज्जैन-इंदौर मार्ग (मीटरगेज से खंडवा लाइन), उज्जैन-मक्सी-ग्वालियर-दिल्ली मार्ग। वायुमार्ग- उज्जैन से इंदौर एअरपोर्ट लगभग 65 किलोमीटर दूर है।
उज्जैन में अच्छे होटलों से लेकर आम धर्मशाला तक सभी उपलब्ध हैं। इसके साथ-साथ महाकाल समिति की महाकाल और हरसिद्धि मंदिर के पास अच्छी धर्मशालाएँ हैं। इन धर्मशालाओं में एसी, नॉन एसी रूम और डारमेट्री उपलब्ध हैं। मंदिर प्रबंध समिति इनका अच्छा रखरखाव करती है।
साथ ही उज्जैन शहर में अच्छी तरह से घूमना चाहते है तो रेंटल बाइक भी लेकर घूम सकते है!